दिल शीशे सा

टूट गया शीशे सा दिल शर्त ये लगाये बैठी हूं।

कभी दर्द तो कभी खुशी को दबाये बैठी हूं।

कितने वर्षों से लिऐ हुए हुं आंखों में ख़्वाब,
न जाने दिल मे कितने कर्ज उनके चुकाये बैठी हूं,

देख न ले कोई अब आंसुओ को इन आंखों में,
फिर आज छिपकर आंखो में काजल लगाए बैठी हूं।

कहती नहीं किसी से अब सब कहना छोड़ दिया,
कबसे इन्तजार में झूठी हंसी चेहरे पे सजाये बैठी हूं।

सँवरती हूं  रोज आईने में देख अपने आप को,
इसलिए अपनो से ही आज खुद को छुपाए बैठी हूं।

देखती हूं जब कोई पंछी पंख फैलाये हुए उड़ने को,
मेरा शीशे सा दिल टूट न जाए खुद को झुकाये बैठी हूं।



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4 Comments

Abhinav ji

16-Sep-2023 07:39 AM

Very nice 👍

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Varsha_Upadhyay

15-Sep-2023 04:14 PM

Nice 👍🏼

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बेहतरीन

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